उत्तराखंड में चमोली ज़िले में रेणी गांव के पास जब पहाड़ी पर मौजूद कुछ युवकों ने देखा कि बहुत सारा पानी एक तूफान की शक्ल में घाटी के बीच से सब कुछ तहस-नहस करता आ रहा है तो वो समझ रहे थे कि ये तूफान रास्ते में पड़ने वाले जल विद्युत परियोजना के कार्यालय और वहां काम करने वाले कर्मचारियों और मज़दूरों की तरफ बढ़ रहा है. उन्होंने पहाड़ी की चोटी से उन लोगों को आगाह करने का असफल प्रयास भी किया लेकिन पानी की गति और शोर के आगे उनकी आवाज़ दब कर रह गई.
मुख्य बातें :
- उत्तराखंड के चमोली ज़िले में हिमखंड टूटने के बाद आई बाढ़ में करीब 200 लोगों के लापता होने की खबर है.
- आईटीबीपी, एसडीआरएफ और एनडीआरएफ के अधिकारी लगातार बचाव कार्य में जुटे हैं.
- पर्यावरणविद् चंडी प्रसाद भट्ट ने पहाड़ों में बनने वाले बांधों पर एक बार फिर सवाल उठाए हैं.
ये सब इतनी तेज़ी से हुआ कि जल विद्युत विभाग के कर्मचारियों के पास शायद ये समझने का वक्त भी नहीं था कि क्या हो रहा है. इसके बाद भी ये जल प्रवाह एक बड़े मोटर पुल और तीन छोटे पैदल पुलों को बहा ले गया.तबाही केवल यहीं तक नहीं थी, उफनता हुआ पानी जब तपोवन पहुंचा तो स्थिति और भी भयावह हो गई. यहां पर भी एनटीपीसी की एक जल विद्युत परियोजना का काम चल रहा था जिसमें करीब 200 कर्मचारी और मज़दूर काम कर रहे थे.
A massive flood in Dhauliganga seen near Reni village. Source: ANI
माना जा रहा है कि तपोवन से पानी कई लोगों को अपने साथ बहा ले गया और वहां कि दो टनल में भी कई लोग मलबे के साथ फंस गए. आलम था कि मलबे के नीचे टनल का मुहाना तक नहीं दिख रहा था.
बाद में य़े पानी उत्तराखंड की एक बड़ी नदी अलकनंदा में मिल गया. हालांकि नदी के रास्ते में पड़ने वाले सभी निचले इलाकों को प्रशासन ने खाली करा दिया था.
लेकिन लगातार आगे बढ़ते इस पानी के बहाव में भी कमी आती गई. लगभग 70 किलोमीटर की यात्रा कर नंदप्रयाग पहुंचने तक इस पानी का बहाव लगभग सामान्य हो गया था.
इस बात की जानकारी प्रदेश के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने भी ट्वीट के जरिए दी.
वहीं स्थानीय पत्रकार सुरेन्द्र सिंह रावत ने हमें बताया कि घटना के कुछ घंटों बाद ही इंडो-तिब्बतन बॉर्डर पुलिस, एसडीआरएफ और एनडीआरएफ के अधिकारियों ने बचाव कार्य शुरू कर दिया था जिसमें मंगलवार सुबह तक कई लोगों को निकाल लिया था. हालांकि बचाव दलों को कुछ मृतक शरीर और मानव-अंग भी बरामद हुए हैं.
वहीं रैमन मैगसेसे पुरस्कार से सम्मानित पर्यावरणविद चंडी प्रसाद भट्ट ने इस घटना पर दुख ज़ाहिर करते हुए. उत्तराखंड में बनने वाली जल विद्युत परियोजनाओं पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि क्या बांधों को बनाने से पहले पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभावों और संभावित ख़तरों का अध्ययन किया जा रहा है?