यह कहानी है गांव में रहने वाले, छल कपट से दूर एक साधारण इंसान की। इसका नाम है लाल बिहारी। पिता का साया उठने के बाद लाल बिहारी की परवरिश ननिहाल में हुई। लेकिन हैरानी की बात यह है कि उम्र बढ़ने पर इन्हें पता चला कि सरकारी रिकॉर्ड में यह मृत्य घोषित हैं । इस बात का इन्हें तब पता चला जब वह बैंक में क़र्ज़ लेने गए। इस गलती के चलते जैसे उनकी पूरी दुनिया ही बदल गई। क्योंकि सरकारी दस्तावेजों में वो मृत खोषित हैं, अब वो किसी भी चीज़ के हक़दार नहीं रहे। अपनी ज़मीन जायदाद खोने के बाद अब उन्हें बैंक या कोई अन्य सरकारी सुविधा भी नहीं मिल सकती।
मुख्य बातें :
- लाल बिहारी को सरकारी दस्तावेजों में जीवित होते हुए भी मृत बताया गया।
- लाल बिहारी को 18 साल लगे अपने आप को जीवित साबित करने में।
- लाल बिहारी के संघर्ष को लेकर अब एक फिल्म भी बन कर तैयार है।
ऐसे में गांव के रहने वाले लाल बिहारी ने अपने आप को जीवित साबित करने के लिए एक लम्बी लड़ाई लड़ी। लड़ाई सिस्टम के खिलाफ, भ्रष्टाचार के खिलाफ। आपको जान कर हैरानी होगी कि लाल बिहारी को 18 साल का लम्बा सफर तय करना पड़ा अपने आप को जीवित सिद्ध करने के लिए। इन 18 सालों में अपने आप को जीवित सिद्ध करने में लाल बिहारी ने हर संभव कोशिशें की, यहाँ तक की बड़े बड़े नेताओं जैसे पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह, राजीव गाँधी और बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक कांशीराम के खिलाफ चुनाव लड़ा कि शायद किसी तरह सरकारी रिकॉर्ड में वह ज़िंदा हो जाएँ।18 साल के लम्बे और कठिन रस्ते को तय कर वो सरकारी रिकार्ड्स में जिन्दा तो हो गए साथ ही साथ इस संघर्ष के बाद उन्होंने हर्जाने हेतु मुकदमा भी कर दिया। अब लाल बिहारी अपने नाम के आगे मृतक लिखते हैं। लाल बिहारी पर जो बीती उसके बाद अब वो अपने जैसे लोगों के लिए संघर्ष करते हैं। इसके लिए उन्होंने मृतक संघ जनकल्याण ट्रस्ट का गठन किया हैं। फिलहाल लाल बिहारी आजमगढ़ में रह रहे हैं।Listen to the podcast in Hindi by clicking on the audio icon in the picture at the top.
Source: supplied by Lal Bihari
Lal Bihari with Film Director Satish Kaushik. Source: supplied by Lal Bihari